लाल बहादुर शास्त्री जी से जुड़ी कुछ रोचक बातें, जिसे जान कर आप भी आश्चर्य करेगें……

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लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 में मुगलसराय (वाराणसी) में हुआ था। उनका निधन 11 जनवरी सन् 1966 ताशकन्द में हुआ था। आप भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपने निधन तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। लाल बहादुर शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी।
लाल बहादुर शास्त्री जी को 1964 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उनको सरकारी आवास के साथ ही “इंपाला शेवरले” कार भी मिली थी। जिसका उपयोग वह बिल्कुल ना के बराबर ही करते थे। वह गाड़ी किसी राजकीय कार्य अथवा विशिष्ट अतिथि के आने पर ही निकाली जाती थी।
एक बार उनके पुत्र सुनील शास्त्री ने किसी निजी काम के लिए इंपाला कार ले गए और वापस लाकर चुपचाप खड़ी कर दी। शास्त्री जी को जब पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कि कितने किलोमीटर गाड़ी चलाई गई ? और जब ड्राइवर ने बताया कि 14 किलोमीटर, तो उन्होंने निर्देश दिया कि लिख दो, चौदह किलोमीटर प्राइवेट यूज।
शास्त्री जी यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाकर निर्देश दिया कि उनके निजी सचिव से कह कर वह सात पैसे प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा कर दें।
शास्त्री जी जब रेल मंत्री थे तो अपने डिब्बे से कूलर क्यो निकलवाये?
जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और बम्बई जा रहे थे। रेलमंत्री के नाते उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था।
गाड़ी चलने पर शास्त्री जी बोले- डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा- जी, इसमें कूलर लग गया है। शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा- कूलर लग गया है …..! बिना मुझे बताए?आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं?
क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी ? शास्त्री जी ने कहा- कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा- बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए। मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी। आज भी फर्स्ट क्लास के उस डिब्बे में जहां कूलर लगा था, लकड़ी जड़ी है।
लाल बादशाह शास्त्री जब रेल मंत्री थे उस दौरान 1956 में महबूबनगर के अरियालपुर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी। इस पर शास्त्री जी ने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपनी पत्नी को पत्र लिखकर क्या पूछा ?
आज़ादी से पहले की बात है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपतराय ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना था। आर्थिक सहायता पाने वालों में लाल बहादुर शास्त्री भी थे। उनको घर का खर्चा चलाने के लिए सोसाइटी की तरफ से 50 रुपए हर महीने दिए जाते थे।
एक बार उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता को पत्र लिखकर पूछा कि क्या उन्हें ये 50 रुपए समय से मिल रहे हैं और क्या ये घर का खर्च चलाने के लिए पर्याप्त हैं ?
ललिता शास्त्री ने जवाब दिया कि- ये राशि उनके लिए काफी है। वो तो सिर्फ 40 रुपये ख़र्च कर रही हैं और हर महीने 10 रुपये बचा रही हैं।
लाल बहादुर शास्त्री ने तुरंत सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि- उनके परिवार का गुज़ारा 40 रुपये में हो जा रहा है, इसलिए उनकी आर्थिक सहायता घटाकर 40 रुपए कर दी जाए और बाकी के 10 रुपए किसी और जरूरतमंद को दे दिए जाएँ।
लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपनी मां से क्या छुपाया ?
शास्त्री जी जब रेलमंत्री थे उस वक्त उन्होंने अपनी माँ को नहीं बताया था कि वो रेलमंत्री हैं, बल्कि ये बताया कि ‘ वे रेलवे में नौकर हैं। ‘ इसी दौरान मुगलसराय में एक रेलवे का कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें शास्त्री जी को ढूंढते-ढूंढते उनकी मां पहुंच गईं।
उनकी माँ ने वहाँ मौजूद लोगों से कहा कि उनका बेटा भी रेलवे में नौकरी करता है , लोगों ने नाम पूछा , माँ ने कहा “लाल बहादुर शास्त्री
लोग हैरान रह गये कि शास्त्री जी की माँ को यह ही नहीं पता कि उनका बेटा रेलवे में नौकरी नहीं करता बल्कि रेलमंत्री है।
क्या हुआ जब शास्त्री जी साड़ी खरीदने पहुंचे ?
जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे उसी दौरान शास्त्री जी उच्च अधिकारियों व अन्य विशिष्ट लोगों के के साथ कपड़े की मिल देखने गए । मिल देखने के बाद शास्त्री जी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखाने को कहा मिल मालिक व कर्मचारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनको दिखाना शुरू किया साड़ियां देखने के बाद शास्त्री जी ने साड़ियां देख कर कहा यह साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं। क्या दाम है इनका ? मिल मालिक ने कहा सर दाम की क्या बात है आप साड़ी पसंद कर लीजिए कोई भी उसके बाद फिर शास्त्री जी ने मिल मालिक से उन साड़ियों के दाम के बारे में पूछा तब मिल मालिक ने कहा सर यह साड़ी ₹1000 की है और यह वाली साड़ी ₹800 की है। शास्त्री जी ने कहा यह बहुत अधिक मूल्य की है। मुझे कम दाम की साड़ियां दिखाइए, मिल मालकिन ने साड़ी दिखाते हुए कहा सर यह साड़ी ₹500 की है और यह दूसरी वाली साड़ी ₹400 की शास्त्री जी फिर बोले या अभी बहुत अधिक मूल्य की साड़ी है मुझ जैसे गरीब के लिए कम कीमत की साड़ी दिखाओ।
वाह! सरकार आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे? यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे यहाँ पधारे,यह साड़ियां तो हम आपको भेंट कर रहे है। शास्त्री जी ने स्पष्ट बोल दिया कि यह साड़ियां मैं आपसे भेंट में नहीं ले सकता। मिल मालिक ने अधिकार जताते हुआ कहा, क्या साहब हमको इतना भी अधिकार नहीं है कि हम अपने प्रधानमंत्री को उपहार भेंट कर सकें। इस पर शास्त्री जी ने बड़ी शांति से जवाब देते हुए कहा- हां, मैं प्रधानमंत्री हूं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद ना सकूं वह उपहार में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊँ। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते मूल्य की साड़ियां दिखाइए, मैं तो अपनी हैसियत के हिसाब से साड़ियां खरीदना चाहता हूं। मिल मालिक का सारा अनुनय-विनय बेकार गया। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की ही साड़ियों का दाम देकर अपने पत्नी के लिए खरीदा। ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी थे शास्त्री जी।
जय जवान जय किसान नारे क्यों दिए गये ?
श्री लाल बहादुर शास्त्री सन् 1964 में जब प्रधानमंत्री बने, तब देश खाने की चीजें आयात करता था, उस वक्त देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था, 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा, तब के हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की और देश की जनता उनके कहने पर सप्ताह में एक दिन (सोमवार) को उपवास भी रखने लगी इस उपवास की शुरुआत उन्होंने सबसे पहले अपने घर से ही की थी। उसके बाद जनता से अपील की । इन्हीं हालात से श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने हमें ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया।
क्या वह वाकई हार्ट अटैक था?

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